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20 घंटे पहले
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पुरुषों का क्षेत्र माने जाने वाले ड्राइविंग में दिनों दिन महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। टू व्हीलर, कार और यहां तक कि बस ड्राइविंग करने में भी महिलाएं लगातार आगे बढ़ रही हैं। ऐसी ही एक महिला गुलेश कुमार ने उबेर के लिए ड्राइविंग की शुरुआत उस वक्त की जब 2007 में उसके पति इस दुनिया में नहीं रहे। गुलेश के सामने अपने नौ साल के बेटे को पालने की चुनौती थी। उसने एक डिपार्टमेंटल स्टोर में पांच साल तक काम किया। 2012 में गुलेश की मां और बेटे ने उसे कार ड्राइवर बनने की सलाह दी।



गुलेश ने बताया कि ये अनुभव मेरे लिए बहुत अजीब था। इससे पहले मैं अपने पति के अलावा कभी किसी के साथ कार में नहीं बैठी थी। लेकिन एक ड्राइवर के तौर पर अब मैं दिनभर में कई महिलाओं और पुरुषों को एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाती हूं। वे उबेर के लिए पिछले चार सालों से काम कर रही हैं। वे रोज 2,000 रुपए कमा लेती हैं। सिर्फ बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों की महिलाएं भी टैक्सी ड्राइविंग को अपनी आजीविका का साधन बनाने में आगे हैं। पश्चमि बंगाल के दुर्गापुर में सुष्मिता दत्ता टू व्हीलर होंडा एक्टिवा पर लोगों को अपनी मंजिल तक पहुंचाती हैं।
वे पिछले तीन सालों से इंडियन ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क कंपनी ओला के लिए कार ड्राइविंग कर रही हैं। सुष्मिता ने बताया – ”मुझे बहुत खुशी होती है जब मैं अपने कमाए पैसे से मेरी इकलौती बेटी के लिए गिफ्ट लेती हूं। सुष्मिता चाहती हैं कि उनसे प्रेरित होकर अन्य महिलाएं भी इस पेशे को अपनाएं”। ऐसी ही तमाम जरूरतमंद महिलाओं को ड्राइविंग के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने की पहल दिल्ली के एक एनजीओ आजाद फाउंडेशन ने की है। इसकी संस्थापक सुष्मिता अल्वा ने बताया कि उनका एनजीओ 2008 से अब तक लगभग 2000 महिलाओं को ड्राइविंग का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना चुकी है।